BAMS Studies : AIAPGET Live Class
Live Class Time : 8:15 PM
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1. How much does weight of uterus increase in Pregnancy – 2. How much is the uteroplacental blood flow during pregnancy 3. How much does BMR increase during pregnancy – 4.
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अश्रु का वेग रोकने से होने वाले रोग तथा चिकित्सा पीनसाक्षिशिरोहृद्रुङ्मन्यास्तम्भारुचिभ्रमाः । सगुल्मा बाष्पतस्तत्र स्वप्नो मद्यं प्रियाः कथाः।।6।। अश्रु का वेग रोकने से पीनस (प्रतिश्याय – नासास्राव), अक्षिरोग, शिरोरोग, हृद्रोग, मन्यास्तम्भ (Torticollis), अरुचि, भ्रम तथा गुल्म होता है। इसमें शयन, मद्यपान तथा प्रिय कहानियों का श्रवण करना चाहिए। छर्दि का वेग रोकने से होने वाले
शरद ऋतुचर्या वर्षांशीतोचिताङ्गानां सहसैवार्करश्मिभिः । तप्तानां सञ्चितं वृष्टौ पित्तं शरदि कुप्यति ॥49॥ तज्जयाय घृतं तिक्तं विरेको रक्तमोक्षणम् । वर्षा एवं शीत का अनुभव करने वाले अङ्गों में सहसा ही सूर्य की किरणों से तपने पर जो पित्त वर्षा एवं शीत से संचित था, वह अब कुपित हो जाता है। इस ऋतु में तिक्त द्रव्यों से
वर्षा ऋतुचर्या आदानग्लानवपुषामग्निः सन्नोऽपि सीदति । वर्षासु दोषैर्दुष्यन्ति तेऽम्बुलम्बाम्बुदेऽम्बरे ॥42॥ सतुषारेण मरुता सहसा शीतलेन च । भूबाष्पेणाम्लपाकेन मलिनेन च वारिणा ॥43॥ वह्निनैव च मन्देन, तेष्वित्यन्योऽन्यदूषिषु । भजेत्साधारणं सर्वमूष्मणस्तेजनं च यत् ॥44॥ आदान काल (शिशिर, वसन्त, ग्रीष्म) के प्रभाव से शरीर दुर्बल एवं जठराग्नि मन्द होती है। वर्षा ऋतु में वातादि दोषों के प्रभाव से जठराग्नि
वर्षा ऋतुचर्या, शरीर शुद्धि , सेवनीय विहार, त्याज्य विहार Read More »
ग्रीष्म ऋतुचर्या तीक्ष्णांशुरतितीक्ष्णांशु्र्ग्रीष्मे सङ्क्षिपतीव यत् ॥26॥प्रत्यहं क्षीयते श्लेष्मा तेन वायुश्च वर्धते ।अतोऽस्मिन्पटुकट्वम्लव्यायामार्ककरांस्त्यजेत् ॥27॥ ग्रीष्म ऋतु में सूर्य अपनी तीक्ष्ण किरणों से जगत के स्नेहों का अधिक मात्रा में आदान (ग्रहण) कर लेता है, जिसके कारण शरीर स्थित जलीयांशश्लेष्मा का क्षय होने लगता है, जिससे वायु दोष की वृद्धि हो जाती है । इसलिए इस ऋतु
शिशिर ऋतुचर्या अयमेव विधिः कार्यः शिशिरेऽपि विशेषतः । तदा हि शीतमधिकं रौक्ष्यं चादानकालजम् ॥17॥ शिशिर ऋतु में भी हेमन्त ऋतु में कही गयी विधियों का विशेष सेवन करना चाहिए। क्योंकि इस ऋतु में शीत अधिक पड़ने लगती है तथा आदानकाल प्रारम्भ हो जाता है, अतः इसमें रूक्षता आने लगती है। वसन्त ऋतुचर्या कफश्चितो हि शिशिरे
शिशिर ऋतु काल, वसन्त ऋतु काल, मध्याह्नचर्या,वसन्त ऋतु में अपथ्य Read More »
अनुकूल व्यवहार निर्देश अवृत्तिव्याधिशोकार्ताननुवर्तेत शक्तितः । अवृतिकान् जिनकी कोई आजीविका नहीं हो, जो व्याधि एवं शोक से पीड़ित हो, उनकी चिकित्सा एवं आश्वासन आदि से यथाशक्ति सहायता करें । समदृष्टिता का निर्देश आत्मवत्सततं पश्येदपि कीटपिपीलिकम् ॥23॥ कीट (वृश्चिक आदि कृमियों) तथा पिपीलिका (चींटी आदि क्षुद्र प्राणियों) को सदैव अपने समान समझना चाहिए, उनकी हिंसा नहीं