चरक संहिता (पूर्वार्द्ध)

आयुर्वेद में अनुसंधान की संक्षिप्त ऐतिहासिक पृष्ठभूमि (Brief Historical Background of Research in Ayurveda)

सोऽयमायुर्वेदः शाश्वतो निर्दिश्यते, अनादित्वात्, स्वभावसंसिद्धलक्षणत्वात् भावस्वभावनित्यत्वाच्च। (च. सू. 30/27) आयुर्वेद एक प्रामाणिक चिकित्सा विज्ञान है जो शाश्वत व नित्य है। इसके ज्ञान का प्रवाह सृष्टि के आदिकाल से है। पृथ्वीलोक से पूर्व यह ज्ञान स्वर्गलोक में था वहाँ इसके प्रथम अन्वेषणकर्ता परमपिता ब्रह्मा थे।  ब्रह्मा से विभिन्न प्रकार के प्रयोगों से परिष्कृत यह ज्ञान दक्ष […]

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औषध एवं भैषज (भैषज्य) में अन्तर

औषध एवं भैषज (भैषज्य) में अन्तर

औषध एवं भैषज (भैषज्य) में अन्तर : औषध एवं भैषज्य दोनों का प्रयोजन रोग को दूर करना है। आचार्य चरक ने भेषज एवं औषध को पर्याय माना है। चिकित्सितं व्याधिहरं पथ्यं साधनमौषधम् । प्रायश्चितं प्रशमनं प्रकृतिस्थापनं हितम् ।। विद्यात् भेषजनामानि…  ।    (च.चि.1/1/3) 1. चिकित्सित 2. व्याधिहर 3. पथ्य 4. साधन 5. औषध 6. प्रायश्चित

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हिक्का रोग (Hikka)

‘हिक् इति कृत्वा शब्दायते इति हिक्का’ Repeated involuntary contractions of diaphragm is hiccough. Most common cause is psychogenic (Neurosis, hysteria, sudden laughter, swallowing cold drinks, hot drinks, cold shower) अधिक तीक्ष्ण व उष्ण पदार्थों के सेवन से gastric mucosa में irritation होती है । जिसके कारण Phrenic nerve stimulate होती है और हिक्का रोग होता

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हरिद्रा || Curcuma longa

Curcuma longa गण – कुष्ठघ्न, लेखनीय, विषघ्न, तिक्तस्कन्ध (च.), हरिद्रादि, मुस्तादि, श्लेष्म संशमन (सु.) । कुल – आर्द्रक कुल (Family) – जिंजिबरेसी- Zingiberacae लैटिन नाम – Curcuma longa हरिद्रा – जो शरीर के वर्ण को ठीक करे काञ्चनी – सुवर्ण के समान पीतवर्ण होने के कारण निशा – चाँदनी रात की तरह सुन्दर वरवर्णिनी –

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Charak Samhita – aaragvadh – 3

(16) कोलादि लेप :- बेर, कुलथी, देवदारु, रास्ना, उड़द, तैलफल – सरसों, एरण्डबीज, तिल आदि, कूठ, वच, सौफ, यव का चूर्ण – इन सबका चूर्ण लेकर काञ्जी में पीसकर सुखोष्ण बनाकर वातरोग से पीड़ित व्यक्ति का लेप करायें । यह वातहर लेप है। (17) वातहर लेप :- जलेचर पशु – पक्षियों का मांस और समभाग

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Charak Samhita – aaragvadh – 2

(7) कुष्ठादि लेप :- कूठ , हल्दी , दारुहरिद्रा , सुरसा , पटोल , नीम , अश्वगन्धा , सुरदारु , शिग्रु , सर्षप , तुम्बरु , धनिया , वन्य ( केवटी ) तथा चण्डा — इन सबको समान भाग लेकर चूर्ण कर लें । फिर चूर्ण को मढे के साथ घोट लें । तत्पश्चात् रोगी

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Charak Samhita – kriyakal

                                                  (1) प्रथम क्रियाकाल :  सञ्चय ( Accumulation ) :- अनेकविध आहार – विहार से दोषों का अपने ही स्थान में संचय होता है, इस दशा में दोषवर्धक एवं दोषसंचयकारक पदार्थों

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Charak Samhita 1 – Dravya – Guna – Karma aur Samvaya

    द्रव्य – गुण – कर्म और समवाय का वर्णन I. द्रव्य वर्णन (Description of Dravya):-              “खादीन्यात्मा मनः कालो दिशश्च द्रव्यसंग्रहः । सेन्द्रियं चेतनं द्रव्यं , निरिन्द्रियमचेतनम् ।” आकाश आदि ( आकाश , वायु , अग्नि , जल और पृथ्वी ) पञ्चमहाभूत द्रव्य तथा आत्मा , मन ,

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Charak Samhita – Moolini evum Phalini dravya

                                    द्रव्यों का वर्गीकरण :- मुलिन्यः षोडशैकोना फलिन्यो विंशतिः स्मृताः ।। महास्नेहाश्च चत्वारः पञ्चैव लवणानि च । अष्टौ मूत्राणि संख्यातान्यष्टावेव पयांसि च ॥ शोधनाश्च षड् वृक्षाः पुनर्वसुनिदर्शिताः । य एतान् वेत्ति संयोक्तुं विकारेषु स वेदवित् ॥ मूलिनी (जिनकी

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Charak Samhita – Samprapti ke bhed

  संख्याप्राधान्यविधिविकल्पबलकालविशेषैर्भिद्यते  १. संख्या २. प्राधान्य ३. विधि ४ . विकल्प ५. बल काल – विशेष भेद से ५ प्रकार की होती है । (1) संख्या सम्प्राप्ति :- संख्या तावद्यथा – अष्टौ ज्वराः, पञ्च गुल्माः, सप्त कुष्ठान्येवमादिः  संख्या, जैसे — आठ ज्वर, पाँच गुल्म, सात कुष्ठ आदि । (2) प्राधान्य  सम्प्राप्ति :- प्राधान्यं पुनर्दोषाणां तरतमाभ्यामुपलभ्यते

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