Charak Samhita – Moolini evum Phalini dravya

                                    द्रव्यों का वर्गीकरण :- मुलिन्यः षोडशैकोना फलिन्यो विंशतिः स्मृताः ।। महास्नेहाश्च चत्वारः पञ्चैव लवणानि च । अष्टौ मूत्राणि संख्यातान्यष्टावेव पयांसि च ॥ शोधनाश्च षड् वृक्षाः पुनर्वसुनिदर्शिताः । य एतान् वेत्ति संयोक्तुं विकारेषु स वेदवित् ॥ मूलिनी (जिनकी …

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Charak Samhita – Samprapti ke bhed

  संख्याप्राधान्यविधिविकल्पबलकालविशेषैर्भिद्यते  १. संख्या २. प्राधान्य ३. विधि ४ . विकल्प ५. बल काल – विशेष भेद से ५ प्रकार की होती है । (1) संख्या सम्प्राप्ति :- संख्या तावद्यथा – अष्टौ ज्वराः, पञ्च गुल्माः, सप्त कुष्ठान्येवमादिः  संख्या, जैसे — आठ ज्वर, पाँच गुल्म, सात कुष्ठ आदि । (2) प्राधान्य  सम्प्राप्ति :- प्राधान्यं पुनर्दोषाणां तरतमाभ्यामुपलभ्यते …

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Charak Samhita 1 – Rasa

दशविध परीक्ष्य :- कारण करण कार्ययोनि कार्य कार्यफल अनुबन्ध देश काल प्रवृत्ति उपाय वात के गुण और चिकित्सासूत्र – रूक्षः शीतो लघुः सूक्ष्मश्चलोऽथ विशदः खरः । विपरीतगुणैर्द्रव्यैर्मारुतः सम्प्रशाम्यति ।। रूक्ष, शीत, लघु (हलका), सूक्ष्म, चल (गतिशील), विशद और खर ये वायु के गुण हैं । वह उक्त गुणों के विपरीत (स्निग्ध , उष्ण , गुरु …

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उदकवह स्रोतस की व्याधियां || udakvah sarotas diseases

उदकवहानां स्रोतसां तालुमूलं क्लोम च, प्रदुष्टानां तु खल्वेषामिदं विशेषविज्ञानं भवति, तद्यथा- जिह्वाताल्वोष्ठकण्ठक्लोमशोषं पिपासां चातिप्रवृद्वां दृष्टोदकवहान्यल्य स्रोतांसि प्रदुष्यनीति विद्यात्। (च. वि. 5/8) उदकवह स्रोतस का मूल तालु व क्लोम हैं। आचार्य चरक मतानुसार उदकवह स्रोतस के दुष्ट होने पर जिह्वा, तालु, ओष्ठ, कण्ठ, क्लोम, शोष तथा अति प्रवृद्ध पिपासा उत्पन्न होती है। उदकवहे द्वे, तयोर्मूलं तालु …

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Charak Samhita – Upsaya – Samprapti

उपशय (Therapeutic Suitability) :- उपशयः पुनर्हेतुव्याधिविपरीतानां विपरीतार्थकारिणां चौषधाहारविहाराणामुपयोगः सुखानुबन्धः   १. हेतुविपरीत २. व्याधिविपरीत ३. हेतु – व्याधि उभयविपरीत ४. हेतुविपरीतार्थकारी ५ .व्याधिविपरीतार्थकारी ६. हेतु – व्याधि उभयविपरीतार्थकारी औषध, अन्न तथा आहार के परिणाम में सुखप्रद उपयोग को उपशय कहते हैं ।   उपशय – भेदबोधक सारणी (१) हेतुविपरीत शीत कफज्वर में शुण्ठी आदि उष्ण …

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Charak Samhita 1 – Ayurveda ka Adhikarana – Ayurveda ka paryojan – Dosha

                                             प्रयोजनं चास्य स्वस्थ्यस्य स्वास्थ्यरक्षणमातुरस्य विकारप्रशमनं च ।   This Post contains a brief description on :- त्रिदण्ड और आयुर्वेद का अधिकरण आयुर्वेद का प्रयोजन रोगों के त्रिविध हेतु दोष एवं उनका चिकित्सासूत्र त्रिदण्ड …

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Charak Samhita 1 – Samanya aur vishesh – सामान्य और विशेष

                                सामान्य और विशेष का लक्षण :- सर्वदा सर्वभावानां सामान्यं वृद्धिकारणम् । ह्रासहेतुर्विशेषश्च, प्रवृत्तिरुभयस्य तु ॥ सामान्य सदैव सभी भावों (द्रव्य-गुण-कर्म) की वृद्धि का कारण होता है और विशेष सदैव सभी भावों के ह्रास (कमी) का कारण होता है। सामान्यमेकत्वकरं, …

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 Charak Samhita 1 – Aayu aur ayurveda – Trisutra ayurveda

                   1. दीर्घञ्जीवितीयमधायायं व्याख्यास्यामः   Charak Samhita 1 – Aayu aur ayurveda – Trisutra ayurveda This post contains brief description about : i. Aayu ii. Defination of ayurveda iii. Trisutra ayurveda इस अध्याय के सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं की संक्षिप्त रूप से व्याख्या की जा रही है । 1. …

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Charak Samhita – Jawar Nidan – Panch Nidan

                                अथातो ज्वरनिदानं व्याख्यास्यामः                                                      पञ्चनिदान निदान के पर्याय और प्रकार (Synonyms and Types of …

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परिभाषा एवं द्रव्य वर्ग प्रकरण – 1

परिभाषा लक्षण : – निगूढानुक्तलेशोक्तसंदिग्धार्थ प्रदीपिका । सुनिश्चितार्था विबुधैः परिभाषा निगद्यते।। जिन संक्षिप्त और सांकेतिक शब्दों द्वारा शास्त्र के गुप्त, अप्रकट, किंचित् प्रकट तथा संदिग्ध अर्थ का स्पष्ट और निश्चित अर्थ प्राप्त हो, उसे परिभाषा कहते है । गूढ, सांकेतिक, गंभीर शब्दों का स्पष्ट ज्ञान परिभाषा से ही होता है। आवाप : – द्रव्यान्तरविनिक्षेपो द्रुते …

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