Month: July 2020

हरिद्रा || Curcuma longa

Curcuma longa गण – कुष्ठघ्न, लेखनीय, विषघ्न, तिक्तस्कन्ध (च.), हरिद्रादि, मुस्तादि, श्लेष्म संशमन (सु.) । कुल – आर्द्रक कुल (Family) – जिंजिबरेसी- Zingiberacae लैटिन नाम – Curcuma longa हरिद्रा – जो शरीर के वर्ण को ठीक करे काञ्चनी – सुवर्ण के समान पीतवर्ण होने के कारण निशा – चाँदनी रात की तरह सुन्दर वरवर्णिनी – …

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पाटला || Stereospermum suaveolens

   गण – शोथहर (च.); वृहत् पञ्चमूल, अधोभागहर, आरग्वधादि (सु.) कुल – श्योनाक कुल (Family) – बिगनोनिएसी – Bignoniaceae लैटिन नाम – Stereospermum suaveolens पिटला – पुष्प  पाटलवर्ण- (रक्ताभ होने के कारण) कृष्ण वृन्त – काले डंठल वाली मधुदूति अलिवल्लभा – पुष्प सुगंधित और मधुमय होने से इनकी ओर भ्रमर अधिक आकर्षित होते हैं । …

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Charak Samhita – aaragvadh – 3

(16) कोलादि लेप :- बेर, कुलथी, देवदारु, रास्ना, उड़द, तैलफल – सरसों, एरण्डबीज, तिल आदि, कूठ, वच, सौफ, यव का चूर्ण – इन सबका चूर्ण लेकर काञ्जी में पीसकर सुखोष्ण बनाकर वातरोग से पीड़ित व्यक्ति का लेप करायें । यह वातहर लेप है। (17) वातहर लेप :- जलेचर पशु – पक्षियों का मांस और समभाग …

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Charak Samhita – aaragvadh – 2

(7) कुष्ठादि लेप :- कूठ , हल्दी , दारुहरिद्रा , सुरसा , पटोल , नीम , अश्वगन्धा , सुरदारु , शिग्रु , सर्षप , तुम्बरु , धनिया , वन्य ( केवटी ) तथा चण्डा — इन सबको समान भाग लेकर चूर्ण कर लें । फिर चूर्ण को मढे के साथ घोट लें । तत्पश्चात् रोगी …

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Charak Samhita – kriyakal

                                                  (1) प्रथम क्रियाकाल :  सञ्चय ( Accumulation ) :- अनेकविध आहार – विहार से दोषों का अपने ही स्थान में संचय होता है, इस दशा में दोषवर्धक एवं दोषसंचयकारक पदार्थों …

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तृष्णा रोग ( Polydypsia )

तृष्णा रोगगत तथा पित्त दोष की दुष्टिजनित मानी गई है क्योकि वात का शोषण गुण तथा पित्त का अग्निप्रधान गुण होने से ये दोष तृष्णा की उत्पत्ति में सहायक है। कुछ व्याधियों में तृष्णा लक्षण या उपद्रव के रूप में प्रकट होती है तथा रसजज्वर, रक्तज ज्वर, मान्सज ज्वर मेदज ज्वर, पित्तोदर, प्लीहोदर, बद्धोदर, जलोदर, …

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Charak Samhita 1 – Dravya – Guna – Karma aur Samvaya

    द्रव्य – गुण – कर्म और समवाय का वर्णन I. द्रव्य वर्णन (Description of Dravya):-              “खादीन्यात्मा मनः कालो दिशश्च द्रव्यसंग्रहः । सेन्द्रियं चेतनं द्रव्यं , निरिन्द्रियमचेतनम् ।” आकाश आदि ( आकाश , वायु , अग्नि , जल और पृथ्वी ) पञ्चमहाभूत द्रव्य तथा आत्मा , मन , …

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Charak Samhita – Moolini evum Phalini dravya

                                    द्रव्यों का वर्गीकरण :- मुलिन्यः षोडशैकोना फलिन्यो विंशतिः स्मृताः ।। महास्नेहाश्च चत्वारः पञ्चैव लवणानि च । अष्टौ मूत्राणि संख्यातान्यष्टावेव पयांसि च ॥ शोधनाश्च षड् वृक्षाः पुनर्वसुनिदर्शिताः । य एतान् वेत्ति संयोक्तुं विकारेषु स वेदवित् ॥ मूलिनी (जिनकी …

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Charak Samhita – Samprapti ke bhed

  संख्याप्राधान्यविधिविकल्पबलकालविशेषैर्भिद्यते  १. संख्या २. प्राधान्य ३. विधि ४ . विकल्प ५. बल काल – विशेष भेद से ५ प्रकार की होती है । (1) संख्या सम्प्राप्ति :- संख्या तावद्यथा – अष्टौ ज्वराः, पञ्च गुल्माः, सप्त कुष्ठान्येवमादिः  संख्या, जैसे — आठ ज्वर, पाँच गुल्म, सात कुष्ठ आदि । (2) प्राधान्य  सम्प्राप्ति :- प्राधान्यं पुनर्दोषाणां तरतमाभ्यामुपलभ्यते …

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Charak Samhita 1 – Rasa

दशविध परीक्ष्य :- कारण करण कार्ययोनि कार्य कार्यफल अनुबन्ध देश काल प्रवृत्ति उपाय वात के गुण और चिकित्सासूत्र – रूक्षः शीतो लघुः सूक्ष्मश्चलोऽथ विशदः खरः । विपरीतगुणैर्द्रव्यैर्मारुतः सम्प्रशाम्यति ।। रूक्ष, शीत, लघु (हलका), सूक्ष्म, चल (गतिशील), विशद और खर ये वायु के गुण हैं । वह उक्त गुणों के विपरीत (स्निग्ध , उष्ण , गुरु …

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