BAMS Studies

Anatomy important quiz

1. आचार्य चरक तथा सुश्रुतानुसार गर्भ की परिभाषा लिखिए। Ans.  “शुक्र शोणितं जीव संयोगे तु खलु कुक्षिगते गर्भ संज्ञा भवति।” ( च. शा. 4/5) स्त्री के शरीर (Uterus, गर्भाशय) में पुरुष का शुक्र, स्त्री का आर्तव और जीवात्मा का मिलन होने पर उसे गर्भ कहा जाता है। “शुक्र शोणितं गर्भाशयस्थं आत्मप्रकृतिविकार सम्मूर्च्छितं गर्भ इत्युच्यते ।” …

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हिक्का रोग (Hikka)

‘हिक् इति कृत्वा शब्दायते इति हिक्का’ Repeated involuntary contractions of diaphragm is hiccough. Most common cause is psychogenic (Neurosis, hysteria, sudden laughter, swallowing cold drinks, hot drinks, cold shower) अधिक तीक्ष्ण व उष्ण पदार्थों के सेवन से gastric mucosa में irritation होती है । जिसके कारण Phrenic nerve stimulate होती है और हिक्का रोग होता …

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ज्वर के लक्षण (Symptoms of Fever)

ज्वर के लक्षण (Symptoms of Fever)   ज्वर प्रत्यात्मिकं लिङ्गं संतापो देहमानस:।। (च.चि. ३/३१) आचार्य चरक मतानुसार शरीर तथा मन में संताप होना ही ज्वर का आत्मलक्षण है। (fever) सामान्यतो विशेषात्तु जृम्भाऽत्यर्थ समीरणात्। पित्तात्रयनोर्दाह: कफादनारूचिर्भवेत्।। रूपैरन्यराभ्यां तु संसृष्टैर्द्वन्द्वजं विदुः। सर्वलिङ्गसमवाय: सर्वदोष प्रकोपजे।।                  (सु.उ. ३९/२७-२८)            …

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ज्वर रोग (Fever)

आयुर्वेद के आचार्यों ने ज्वर को सबसे महत्त्वपूर्ण तथा प्रधान व्याधि माना है। ज्वर के प्रधान होने का एक मुख्य कारण यह भी है कि सभी प्राणियों में ज्वर जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त तक कभी न कभी अवश्य उत्पन्न होता है। यह एक स्वतन्त्र व्याधि है तथा कई व्याधियों के लक्षण के रूप में भी …

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हरिद्रा || Curcuma longa

Curcuma longa गण – कुष्ठघ्न, लेखनीय, विषघ्न, तिक्तस्कन्ध (च.), हरिद्रादि, मुस्तादि, श्लेष्म संशमन (सु.) । कुल – आर्द्रक कुल (Family) – जिंजिबरेसी- Zingiberacae लैटिन नाम – Curcuma longa हरिद्रा – जो शरीर के वर्ण को ठीक करे काञ्चनी – सुवर्ण के समान पीतवर्ण होने के कारण निशा – चाँदनी रात की तरह सुन्दर वरवर्णिनी – …

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पाटला || Stereospermum suaveolens

   गण – शोथहर (च.); वृहत् पञ्चमूल, अधोभागहर, आरग्वधादि (सु.) कुल – श्योनाक कुल (Family) – बिगनोनिएसी – Bignoniaceae लैटिन नाम – Stereospermum suaveolens पिटला – पुष्प  पाटलवर्ण- (रक्ताभ होने के कारण) कृष्ण वृन्त – काले डंठल वाली मधुदूति अलिवल्लभा – पुष्प सुगंधित और मधुमय होने से इनकी ओर भ्रमर अधिक आकर्षित होते हैं । …

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Charak Samhita – aaragvadh – 3

(16) कोलादि लेप :- बेर, कुलथी, देवदारु, रास्ना, उड़द, तैलफल – सरसों, एरण्डबीज, तिल आदि, कूठ, वच, सौफ, यव का चूर्ण – इन सबका चूर्ण लेकर काञ्जी में पीसकर सुखोष्ण बनाकर वातरोग से पीड़ित व्यक्ति का लेप करायें । यह वातहर लेप है। (17) वातहर लेप :- जलेचर पशु – पक्षियों का मांस और समभाग …

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Charak Samhita – aaragvadh – 2

(7) कुष्ठादि लेप :- कूठ , हल्दी , दारुहरिद्रा , सुरसा , पटोल , नीम , अश्वगन्धा , सुरदारु , शिग्रु , सर्षप , तुम्बरु , धनिया , वन्य ( केवटी ) तथा चण्डा — इन सबको समान भाग लेकर चूर्ण कर लें । फिर चूर्ण को मढे के साथ घोट लें । तत्पश्चात् रोगी …

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Charak Samhita – kriyakal

                                                  (1) प्रथम क्रियाकाल :  सञ्चय ( Accumulation ) :- अनेकविध आहार – विहार से दोषों का अपने ही स्थान में संचय होता है, इस दशा में दोषवर्धक एवं दोषसंचयकारक पदार्थों …

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तृष्णा रोग ( Polydypsia )

तृष्णा रोगगत तथा पित्त दोष की दुष्टिजनित मानी गई है क्योकि वात का शोषण गुण तथा पित्त का अग्निप्रधान गुण होने से ये दोष तृष्णा की उत्पत्ति में सहायक है। कुछ व्याधियों में तृष्णा लक्षण या उपद्रव के रूप में प्रकट होती है तथा रसजज्वर, रक्तज ज्वर, मान्सज ज्वर मेदज ज्वर, पित्तोदर, प्लीहोदर, बद्धोदर, जलोदर, …

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